E-mail : vasudeomangal@gmail.com 

‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

*यूनिफार्म सिविल कोड संविधान प्रदत्त धर्म निरपेक्ष सिद्धान्त पर सीधी चोट*
-----------------------------------
सम सामयिक लेख - वासुदेव मंगल, ब्यावर

भारत में लोकतन्त्र को राजतन्त्र में परिवर्तित करने की कोशिश युद्धस्तर पर की जा रही है। जो पार्टी अटठानवें साल से नेपथ्य में रहकर, बैसाखी के सहारे, बिना किसी आजादी के लड़ाई में बलिदान के, वर्तमान में सत्ता सुख, अदृश्य तरीके से, भोग रही है। उसका तार्किक सोच है कि सत्ता का स्वाद, लोकतन्त्र को राजतन्त्र में बदलकर ही जारी रक्खा जा सकता हैं इसीलिये नेपथ्य में रहकर यह दल रोज नये नये हथकण्डे अपनाकर अपने वर्चस्व को बदस्तूर कायम रखना चाह रही हैं इसीलिये नये संसद भवन का निर्माण करवाकर, लोकसभा के अध्यक्ष के आसन के पास सेंगोल स्थापित करवाया है ताकि लोकतन्त्र की परम्परा का निर्वहन समाप्त कर राजतन्त्र की परम्परा चालू की जा सके। परन्तु वर्तमान में शासकदल लोकतन्त्र की स्वस्थ्य परम्परा से खिलवाड़ कर जो यह शासन विधि, एक तरफा बदल रहा है, हकीकत में, बहुत बड़ी भूलकर रहा हैं। अंग्रेजों ने जाते जाते पण्डित जवाहरलाल नेहरू को राज चिन्ह अपना देकर गए वह तो राजतन्त्र का चिन्ह था और जब तक 15 अगसत 1947 सेे लेकर 26 जनवरी 1950 तक इस राजतन्त्र के प्रतीक अंगें्रजों के सेंगोल को नेपथ्य में रक्खा। 26 जनवरी 1950 को जब भारत देश की अवाम् ने गणतन्त्र को अंगीकार करके शासन पद्धति शुरू की तो राजतन्त्र अर्थात् राजशाही के प्रतीक संेगोल को इलहाबाद के म्युजियम में रखवा दिया क्योंकि यह तो राजशाही का प्रतीक था। भारत देश में सत्ता का मार्ग लोकतन्त्र को स्वीकार किया गया जिसका सीधा सीधा अर्थ जनता का जनता द्वारा जनता के लिये राज है। अतः लोकतन्त्र की इस प्रणाली में राजा द्वारा राज करना नहीं है जैसा कि अंग्रेजी शासन की हुकुमत में होता आ रहा था। इसलिये अंग्रेजों ने भारत से जाते जाते शासन की प्रतीक सेंगोल को भारत के शासक को सौंपा था। उन्होंने भी अपने स्तर पर सही किया। परन्तु आप दखिये 93 दिन बाद भारत ने जो शासन तन्त्र की प्रणाली अपनाई वह राजशाही नहीं थी इसलिये सेंगोल नेपथ्य में इलाहाबाद के म्युजियम में रखवाया गया था।
अब यदि राजतन्त्र के प्रतीक सेंगोल से वर्तमान के सत्तादल को इतना ही ज्यादा लगाव है तो इस प्रतीक चिन्ह को राष्ट्रपति भवन में जरूर स्थापित किया जा सकता है जो लेखक के विचार मंे सही स्थान हैं क्योंकि यह बरतानिया सरकार के राजशाही का प्रतीक है जिसे राज करने की प्रथा को हमारे देश के अवाम् ने आमूलचून बदलकर स्वतन्त्र देश घोषित कर राज करने की स्वतन्त्र प्रथा कायम की। यह स्वतन्त्र प्रणाली लोकतांत्रिक गणराज्य है जो जनता का जनता द्वारा जनता के लिये संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक समाजवाद धर्मनिरपेक्ष की मूल आत्मा पर आधिरित है जिस पर कुशलतापूर्वक राज करते हुए 26 जनवरी 1950 से तेहतर वर्ष पूरे हो गए और चोहत्तरवाँ साल चल रहा है। आज तक तो इसमें कोई अड़चन नहीं आई। अब अचानक हमारी केन्द्र में शासन करने वाली वर्तमान सरकार को ऐसा कौनसा डर सता रहा है कि यह ऊलूल जलूल पर की बात कर रही हैं शासन प्रणाली में यदि आमूलचुन परिवर्तन करने का हठ वर्तमान की केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी सरकार का है तो वह अपने स्तर पर एक तरफा ऐसा नहीं कर सकती हैं इस शासन करने के तरीके में बदलाव के लिये उसको पूरे देश में जनमत संग्रह कराना होगा और ऐसा करके ही बदलाव हो सकता है अन्यथा कदापि नहीं।
ऐसा करने से संविधान की मूल आत्मा पर चोट होगी जिससे देश में राज करने की व्यवस्था छिन्न भिन्न हो जायेगी और देश में गृह-युद्ध जैसी स्थिति पैदा होगी। देश में खतरा उत्पन्न होकर देश बिखर जायेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी वर्तमान में केन्द्र सरकार की होगी।
इतिहास गवाह है कि पाँच हजार साल के अधिक समय से देश में विविधता में एकता वाली संस्कृति विद्यमान निरन्तर बे-रोक-टोक सुचारू रूप से बिना रूकावट बाधा के चली आ रही हैं किसी भी धर्म की मूल आत्मा से छेड़ छाड़ सरकार को कहीं मंहगी न पड़ जाय और फिर पछताने के सिवाय कोई जरिया नहीं अतः समय रहते सरकार को चेत जाना ही सही कदम होगा नादानी कहीं सरकार को भार न पड़ जाय। ऐसा करना मधुमक्खी के छाते में हाथ डालने जैसा होगा या फिर साँप की बाम्बी में हाथ डालना जैसा होगा। अतः ठण्डे दिमाग से सोचकर ही ऐसा ऊलूल जलूल वाला कदम उठाना कहीं देश को बर्बाद ने कर दे इस बात पर समझदारी अत्यन्त आवश्यक है। जोश ही जोश में कहीं लेने के देने न पड़ जाय।
यह देश भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्रों, संस्कृति, त्यौहार उत्सव, कला वाला देश हैं जिसकी एकता निर्बाध गति से निरन्तर सदियों से शान्ति, भाईचारे, प्रेमपूर्वक परस्पर सद्भाव से चली आ रही हैं कहीं धार्मिक उन्माद नासूर न बन जाय जो सम्भाले से भी नहीं सम्भल पावे देश में ऐसा वातावरण कतई नहीं होने पावे नहीं तो देश गर्त में चला जावेगा। *देश इस समय दोराहे पर खड़ा है। इसे किस तरफ मोड़ना है विकास के रास्ते पर या फिर विनाश के रास्ते पर ले जाना है* यह आपके सोच पर निर्भर है।
अतः अवाम् से लेखक की करबद्ध विनती है जो भी सोचे सही सोचे और जो भी करे सही करे। जिसने आज तक कुरबानी नहीं दी और बिना कुरबानी के ही जो दल पिछले समय दशक से सत्ता सुख परदे के पीछे दूसरे दल के सहारे भोग रहा है और हमेशा के लिये सत्ता सुख भोगने के लिये आमादा है और इसीलिये राज करने की व्यवस्था में बदलाव करना चाहता है यह कोई इतना आसान नहीं है जो वह समझ रहा है।
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
Follow me on Twitter - https://twitter.com/@vasudeomangal
Facebook Page- https://www.facebook.com/vasudeo.mangal
Blog- https://vasudeomangal.blogspot.com

E mail : praveemangal2012@gmail.com 

Copyright 2002 beawarhistory.com All Rights Reserved